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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
12. श्रीकृष्ण की मनोहर बाललीलाएँ
किंतु श्रीकृष्ण मानते नहीं। जननी समझ नहीं पातीं कि कैसे समझाऊँ। वे सोच रही हैं-गगनस्थचन्द्र को दिखाकर मैंने भूल की-
कुछ देर सोचती रहकर फिर जननी बोलीं-
‘अच्छी बात है। खिलौना ही सही। तू इसे ला तो दे। मैं खाऊँगा नहीं, इससे खेलूँगा। मैं इस खिलौने को लूँगा ही- श्रीकृष्णचन्द्र पहले की अपेक्षा भी और अधिक हठ कर बैठे-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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