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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
12. श्रीकृष्ण की मनोहर बाललीलाएँ
श्रीकृष्णचन्द्र गगनस्थ चन्द्र को देखकर चुप हो जाते हैं। वे कभी आकाशचन्द्र की ओर तो कभी गगरी में प्रतिबिम्बित चन्द्र की ओद देखने लगते हैं। उन्हें प्रतीत हो रहा है-दो चन्द्र हैं; एक गगरी में, एक आकाश में। जननी पुत्र का मनोभाव जान लेती हैं। समझाती हैं-‘मेरे प्राणधन! देख, चन्द्र तेरा मुख देखने आता है; जब तू गगरी की ओर देखता है, तब चनद्र गगरी में आ जाता है; तू आकाश की ओर देखता है, तब आकाश में चला जाता है।’ जननी के इस उत्तर से नीलमणि का यह समाधान तो हो जाता है कि चन्द्र एक है; पर इससे क्या हुआ? उन्हें तो चन्द्र जो चाहिये। उसे पाने के लिये वे उपाय सोचते हैं एवं चन्द्र को ला देने के लिये जननी के सामने पुनः मचल जाते हैं-
हठीले पुत्र को जननी बार-बार समझा रही हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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