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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
12. श्रीकृष्ण की मनोहर बाललीलाएँ
अब व्रजसुन्दरियाँ एक नयी युक्ति करती हैं। निर्मल पात्र में जल भर देती हैं। उस जलपात्र में जननी चन्द्र का आवाहन कर रही हैं-
कुछ देर इस भाँति चन्द्र को आने के लिये बार-बार निमन्त्रित कर जननी जलपात्र को भूमि पर स्थापित कर देती हैं एवं उल्लास भरे स्वर में कहती हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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