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विश्वपति विजेन्द्र नन्दन के स्वागत के लिये ही तो यह साज-सज्जा प्रस्तुत हुई है; उनकी अनन्त श्री का प्रकाश ही तो सर्वत्र व्याप्त हो रहा है-
- हरित हरिभि: शष्पैरिन्द्रगोपैश्च लोहिता:।
- उच्छिलीन्ध्रकृतच्छाया नृणां श्रीरिव भूरभूत्॥[1]
- बुढ़ी लढ़ी जु हरित भई धरनी।
- उच्छिलींघ्र छबि फबि हिय हरनी।।
- जनु कोउ भूपति उतरयौ आइ।
- छत्र तनाइ, बिछौन बिछाइ।।
- त्रन-अंकर-संकुलित भूमितल ललित कलित हरियाहीं।
- जिमि सुक्रतिन के पुन्य पुराक्रत दिन प्रतिदिन अधिकाहीं।।
- हरित भूमिपर इंद्रबधू छबि छत्रक दंड बिराजै।
- जिमि नरनाह राजसी राजति सुंदर सुषमा साजै।।
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