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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
77. कंस के अनुचरों का मुञ्जाटवी में स्थित गोवृन्द को पुनः दावाग्नि से वेष्टित करना और भयभीत गोप-बालकों का श्रीकृष्ण-बलराम को पुकारना; श्रीकृष्ण का बालकों को अपने नेत्र मूँदने को कहकर स्वयं उस प्रचण्ड दावानल को पी जाना
बहुत दूर चलने के अनन्तर जब उस मुञ्जटवी का आरम्भ हुआ, तब गौओं का वह आर्त्तनाद उन्हें सुन पड़ा। किंतु आगे सरकंडों के गहन वन में वे प्रविष्ट हो सकें, यह तो सम्भव ही नहीं। श्रान्त हुए वे सब शिशु अपने सखा ‘कन्नू’ भैया की ओर ही देखने लगे-
तथा उनकी ओर देख लेने पर अब तक कहाँ किसे निराशा मिली है? फिर शिशु तो उनके प्राण-सखा ठहरे। तत्क्षण लीला-विहारी ने गायों को बुला लेने की एक अतिशय सुन्दर युक्ति निकाल दी। जय हो नीलसुन्दर की, उनकी उस मनोहर भंगिमा की! वह देखो-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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