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व्रज वासियों की सम्पत्ति, उनकी जीविका का एक मात्र साधन ये गौएँ मिल नहीं रही है, इससे कितने व्याकुल हो उठे वे शिशु- यह कोई उन्हें प्रत्यक्ष देख कर ही अनुभव कर सकता है। ‘भैया रे कन्नू! क्या मुँह दिखायेंगे हम लोग बाबा को, मैया को!’- शिशुओं की यह आर्त्तवाणी सर्वत्र अरण्य में गूँज उठती है। उनका धैर्य छूटने लगता है। किंतु राम-श्याम के प्रोत्साहन से जैसे भी हो, उन्हें ढूँढ़ लेने का ही निश्चय किया गया। सब के सब गायों के खुर एवं दाँतों से कटे हुए तृणों के पीछे, एवं स्थान-स्थान पर आर्द्र धरा पर बने हुए खुरों के चिह्नों का अनुसरण करते हुए आगे बढ़े-
- तृणैस्तत्खुरदच्छिन्नैर्गोष्पदैरङ्कितैर्गवाम्।
- मार्गमन्वगमन् सर्वे नष्टाजीव्या विचेतस:॥[1]
- देत खुरन तृन तूटे देखी।
- पुनि अंकित पद भू-थल पेखी।।
- तेहि मग चले सकल अकुलाई।
- अति चिंता गोपन उर छाई।।
- धेनु जीविका है सब जासू।
- नष्ट-चित्त सब ह्वै गए आसू।।
- उभय भ्रात बिनु सब अकुलाने।
- ढूँढ़त गोधन सब बिलखाने।।
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