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‘वे आ रहे हैं नीलसुन्दर, हमें धारण कर अलंकृत होंगे वे एवं उनके प्राणसखा वर्ग!’ गैरिक आदि धातुओं ने तो जैसे अपने अन्तस्तल का राग समर्पित करने के उद्देश्य से वन की उन पगडंडियों के समीप ही अपना निवास आवास बना लिया है- ‘पता नहीं, कब नीलसुन्दर हमारे द्वारा रञ्जिजत होने की इच्छा कर लें!’ इस प्रकार सभी वस्तुएँ एक साथ उपलब्ध हो गयी हैं, तब इनके उपयोग में विलम्ब क्यों हो। राम-श्याम ने, गोप शिशुओं ने देखते-देखते ही इन नव किसलयों से, मोर पंखों से, चित्र-विचित्र कुसुम गुच्छों से, विविध वर्णमयी पुष्प मालाओं से, रंगीन धातुओं से अपने-आप को भाँति-भाँति के वेश में सजा लिया-
- प्रवालबर्हस्तबकस्नग्धातुकृतभूषणा:।
- मोर-पच्छ, स्नज, धातु, प्रबाला।
- सुमन-गुच्छ किय बेस बिसाला॥[1]
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