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- प्रेम-मुदित गावत व्रजनारीं जसुमति मंदिर आई।
- कंचन-थार बधाए सजि-सजि न्यौतो टीको लाई।।
- चंदन-अगर-कपूर-सुवासित आँगन-भौन लिपाए।
- बंदनमाला सथिये द्वारें, मोतिन चौक पुराए।।
- कनकपीठि तापर जुग धरि कैं दच्छिन चीर बिछाए।
- महर महरि गिरिधरन गोद ले मुदित तहाँ बैठाए।।
- अन्वाचार्य मुनि गर्ग-परासर कुस आसन पधराए।
- बड़रे देव पुजाय लाल कौं बहुबिधि दान दिवाए।।
- बंदीजन सब द्वारें गावैं, घुरे निसान-नगारे।
- देव दुंदुभी गगन बजावत, व्रज कौतूहल भारे।।
- दै असीस द्वारें तहाँ जाचक भए सबन मन भाए।
- मुँह माँगे सबहिन कौं नखसिख पट-भूषन पहराए।।
- राई-लौन उतारि आरती प्रमुदित मंगल गाए।
- अति उछाह भरि-भरि लालन कौं सब की गोद दिवाए।।
- बरन-बरन आभूषन सारी ब्रजतरुनीं पहराई।
- प्रमुदित बहुरि चली निज गृह कौं मनहुँ रंक निधि पाई।।
- नंदराय बड़रे गोपन कौं चरनन सीस नवाए।
- जोरि उभय कर करत बीनती, कृपा पुन्य फल पाए।।
- गोपबृंद ऋषिबृंद विदा देत चले आसीसा।
- ब्रजपति-ब्रजरानी, हरि-हलधर जीवौ कोटि बरीसा।।
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