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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
10. व्रज में क्रमशः छहों ऋतुओं का आगमन और श्रीकृष्ण की वर्षगाँठ
श्रीकृष्णचन्द्र की उन विविध रसमयी लीलाओं के दर्शन से ग्रीष्म की उत्कण्ठा उत्तरोत्तर बढ़ती जाती तथा अब तो वह रससागकर श्रीकृष्ण से नित्य जुड़े रहने के लिये तड़पने लगा; क्योंकि उसकी अवधि भी सीमित थी। ज्यों-ज्यों जाने का समय निकट आ रहा था, उसकी जलन बढ़ रही थी। सहसा एक दिन उसे श्रीकृष्ण के सुचिक्कण कपोलों पर प्रस्वेदकण दीख पड़े। बस, उसकी मनोरथ-पूर्ति का उसे सुन्दरतम अवसर मिल गया। वह अविलम्ब मानो श्रीकृष्ण के कपोलों पर झलकते हुए स्वेद बिन्दुओं में ही विलीन हो गया। इस प्रकार व्रजपुर में छः ऋतुएँ आयीं तथा श्रीकृष्णचन्द्र के असीम सुन्दर रूप, गुण, लीला का अनुभव कर उन्हीं में विलीन हो गयीं। अब समाधि से जागी हुई-सी वर्षा पुनः आयी तथा आज पुनः भाद्रकृष्णा अष्टमी का दिन आया। इसी ऋतुचक्र एवं इस दिन से जुड़ी हुई श्रीकृष्णचन्द्र की आयु भी एक वर्ष की हो गयी। आज अतिशय उमंग से श्रीकृष्ण की वर्षगाँठ मनायी गयी है-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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