|
- फल कें गिरते सोर चहुँ ओरा।
- धायौ अकनि असरु खल घोरा।।
- चलेउ रोष भरि, छोभ करि, गिरि सम काय बिसाल।
- कंपित छिति गिरि-द्रम सहित अतिसै कूर कराल।।
- आइ तुरित जहँ हलधर ठाढ़े।
- जुगुल पाय उर में हनि गाढ़े।।
- करि खर नाद मूढ़ सठ घोरा।
- भ्रमत भयौ बल के चहुँ ओरा।।
- सोर सुनत अति जोर भरौ धेनुक धरि धायव।
- रासभ रूप उमंडि मंडि रन सनमुख आयव।।
- फल लखि बड्ढिय रोस, घोस घन रोस सुबोलत।
- धमकत धरनि धधाय, भूमि भूधर सब डोलत।।
- करि श्रवन-पुच्छ उन्नत, तजतु घ्रान-रंध्र स्वाँसानि सुर।
- लखि महाबली बलभद्र कहँ पिछले पग घालत असुर।।
|
|