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बस, स्वयं अभी प्रत्यक्ष अनुभव कर लो- उन फलों की मनोहर सुगन्ध सर्वत्र फैल रही है, हम सभी को यहीं से उसकी स्पष्ट गन्ध मिल जो रही है! भैया रे श्रीकृष्ण! इस गन्ध से तो हम सबों का मन ही लुब्ध हो गया; हमें तुम तालफल अवश्य खिला दो! दाऊ दादा! हमारी प्रबल इच्छा है इन फलों को पा लेने की, भोजन करने की! बस, अब देर न करो। यदि हमारा प्रस्ताव तुम्हें रुचिकर लगे तो वहाँ अवश्य चलो, दादा!’
- रामा राम महाबाहो कृष्ण दुष्टन्निबर्हण।
- इतोऽविदूरे सुमहद् वनं तालालिसंकुलम्॥
- फलानि तत्र भूरीणि पतंति च।
- संति किंत्ववरुद्धानि धेनुकेन दुरात्मना॥
- सोऽतिवीर्योऽसुरो राम हे कृष्ण खररूपधृक्।
- आत्मतुल्यबलैरन्यैर्ज्ञातिभिर्बहुभिर्वृत:॥
- तस्मात् कृतनराहाराद् भीतैर्नृभिरमित्रहन्।
- न सेव्यते पशुगणै: पक्षिसंघैर्विवर्जितम्॥
- विद्यन्तेऽभुक्तपूर्वाणि फलानि सुरभीणि च।
- एष वै सुरभिर्गंधो विषूचीनोऽवगृह्यते॥
- प्रयच्छ तानि न: कृष्ण गन्धलोभितचेतसाम्।
- वाञ्छास्ति महती राम गम्यतां यदि रोचते॥[1]
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