गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 186

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
चौहदवां अध्याय
गुणत्रयविभागयोग


सत्त्वातसंजायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ।
प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ॥17॥

सत्‍वगुण में जो ज्ञान उत्‍पन्‍न होता है। रजोगुण में से लोभ और तमोगुण में से असावधानी, मोह और अज्ञान उत्‍पन्‍न होता है।

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: ।
जघन्यगुणवृत्तिस्थाअधो गच्छन्ति तामसा: ॥18॥

सात्त्विक मनुष्‍य ऊंचे चढ़ते हैं, राजसी मध्‍य में रहते हैं और अंतिम गुण वाले तामसी अधोगति पाते हैं।

नान्यं गुणेभ्य: कर्तारं यदा दृष्टानुपश्यति ।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मदूभावं सोऽधिगच्छति ॥19॥

ज्ञानी जब ऐसा देखता है कि गुणों के सिवा और कोई कर्ता नहीं है और जो गुणों से परे है उसे जानता है तब वह मेरे भाव को पाता है।

टिप्‍पणी- गुणों को कर्ता मानने वाले को अहंभाव होता ही नहीं। इससे उसके सब काम स्‍वाभाविक और शरीर-यात्रा भर के लिए होते हैं। और शरीर-यात्रा परमार्थ के लिए ही होती है, इसलिए उसके सारे कामों में निरंतर त्‍याग और वैराग्‍य होना चाहिए। ऐसा ज्ञानी स्‍वभावत: गुणों से परे निर्गुण ईश्वर की भावना करता है और उसे भजता है।

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान् ।
जन्ममृत्युजरादु:खैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते ॥20॥

देह के संग से उत्‍पन्‍न होने वाले इन तीन गुणों को पार करके देहधारी जन्‍म, मृत्‍यु और जरा के दु:ख से छूट जाता है और मोक्ष पाता है।

अर्जुन उवाच
कैर्लिग्ङैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो ।
किमाचार: कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते ॥21॥

अर्जुन बोले- हे प्रभो! इन गुणों को तर जाने वाला किन लक्षणों से पहचाना जाता है? उसके आचार क्‍या होते हैं? और वह तीनों गुणों को किस प्रकार पार करता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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