गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
नवां अध्याय
राज विद्याराज गुह्य योग
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे। श्रीभगवान बोले- तू द्वेषरहित है, इससे तुझे मैं गुह्य-से-गुह्य अनुभवयुक्त ज्ञान दूंगा, जिसे जानकर तू अकल्याण से बचेगा। राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्। विद्याओं में यह राजा है। गूढ़ वस्तुओं में भी राजा है। यह विद्या पवित्र है, उत्तम है, प्रत्यक्ष अनुभव में आने योग्य, धार्मिक, आचार में लाने में सहज और अविनाशी है। अश्रद्दधाना: पुरुषा धर्मस्यास्य परंतप। हे परंतप! इस धर्म में जिन्हें श्रद्धा नहीं है, ऐसे लोग मुझे न पाकर मृत्युमय सुसार-मार्ग में बारंबार ठोकर खाते हैं। मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना। मेरे अव्यक्त स्वरूप से यह समूचा जगत भरा हुआ है। मुझमें, मेरे आधार पर सब प्राणी हैं, मैं उनके आधार पर नहीं हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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