गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
बारहवां अध्याय
भक्तियोग
अर्जुन बोले- इस प्रकार जो भक्त आपका निरंतर ध्यान धरते हुए आपकी उपासना करते हैं और जो आपके अविनाशी अव्यक्त स्वरूप का ध्यान धरते हैं, उनमें से कौन योगी श्रेष्ठ माना जायगा ? श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान बोले- नित्य ध्यान करते हुए, मुझमें मन लगाकर जो श्रद्धापूर्वक मेरी उपासना करता है उसे मैं श्रेष्ठ योगी मानता हूँ। सब इंद्रियों को वश में रखकर, सर्वत्र समत्व का पालन करके जो दृढ़ अचल, धीर, अचिंत्य, सर्वव्यापी, अव्यक्त, अवर्णनीय, अविनाशी स्वरूप की उपासना करते हैं, वे सारे प्राणियों के हित में लगे हुए मुझे ही पाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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