गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सोलहवां अध्याय
दैवासुरसंपद् विभागयोग
श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान बोले- हे भारत! अभय, अंत:करण की शुद्धि, ज्ञान और योग में निष्ठा, दान, दम, यज्ञ, स्वाध्याय, तप, सरलता, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शांति, अपैशुन, भ्रतदया, अलोलुपता, मृदुता, मर्यादा, अचंचलता, तेज, क्षमा, शौच, अद्रोह, निरभिमान- इतने गुण उसमें होते हैं जो दैवी संपत को लेकर जन्मा है। टिप्प्णी- दम अर्थात इंद्रिय निग्रह, अपैशुन अर्थात किसी- की चुगली न करना, अलोलुपता अर्थात लालसा न रखना- लंपट न होना, तेज अर्थात प्रत्येक प्रकार की हीन- वृत्ति का विरोध करने का जोश, अद्रोह अर्थात किसी का बुरा न चाहना या करना। दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च । दंभ, दर्प, अभिमान, क्रोध, पारुष्य, अज्ञान, हे पार्थ! इतने आसुरी संपत लेकर जन्मने वालों में होते हैं। टिप्पणी- जो अपने में नहीं है वह दिखाना दंभ है, ढोंग है, पाखंड है। दर्प यानी बड़ाई, पारुष्य का अर्थ है कठोरता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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