गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 238

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-पदार्थ-कोश
(गीता के शब्‍दों का अर्थ और स्‍थल-निर्देश)
निवेदन


काका साहब ने अपने ʻदो शब्‍द̕ में बताया है कि यह कोश बारह वर्ष पहले तैयार हुआ और जैसा चाहिए था, वैसा न होने पर भी आज क्‍यों छप रहा है। जिन्‍हें मेरे नाम से प्रकाशित अनुवाद में कुछ भी रस है, उनके लिए यह कोश सहज ही आवश्‍यक है। संभव है, अन्‍य गीताभ्‍यासियों के लिए भी यह उपयोगी हो। ऐसे लोगों के लिए मेरी यह सूचना है कि यदि ʻपदार्थ-कोश̕ में दिये हुए अर्थ उन्‍हें न रुचें औद दूसरे अर्थ अधिक प्रिय लगें तो वे उन्‍हें उसी में लिख लें। ऐसा करने सें उन्‍हें बहुत थोड़ी मेहनत में अपना मनचाहा कोश मिल जायगा और इस प्रकार अभ्‍यास करने वाले व्‍यक्ति यदि अपने पसंद किये हुए अर्थ मेरे पास भेज दें तो मैं आभारी होऊंगा।

मैं ज्‍यों-ज्‍यों गीता का अभ्‍यास करता हूँ त्‍यों-त्‍यों मुझे उसकी अनुपमता अधिक मालूम होती जाती है। मेरे लिए वह आध्‍यात्मिक कोश है।

मैं जब कभी कार्याकार्य की परेशानी में पड़ता हूँ तब उसका आश्रय लेता हूँ और अब तक उसने मुझे कभी निराश नहीं किया। वह सचमुच कामधेनु है। रोज एक श्लोक, फिर दो, फिर पांच, फिर रोज एक अध्‍याय, फिर चौदह दिन में पारायण और अंत में कई वर्ष से हम में से कुछ लोग सात दिन के पारायण तक पहुँच गये हैं और सुबह साढ़े चार बजे के लगभग निश्चित दिनों के निश्चित अध्‍यायों की ध्‍वनि सुनाई पड़ती है। कुछ ने, बहुत थोड़े लोगों ने, अठारहों अध्‍याय कंठस्थ कर लिये हैं। वार के हिसाब से सुबह की प्रार्थना में रोज क्रम चलता है:

शुक 1, 2; शनि 3, 4, 5; रवि 6, 7, 8; सोम 9, 10, 11, 12; मंगल 13, 14,15; बुध 16, 17; गुरु 18 इस विभाजन के विषय में इतना ही कहना काफी है कि इसके पीछे एक विचार श्रेणी रही है। ऐसा अनुभव है कि इस प्रकार मनन करने में ठीक-ठीक सुविधा होती है।

यह प्रश्‍न उठना संभव है कि शुक्रवार से ही पारायण क्‍यों शुरू हुआ। इसका कारण इतना ही है: काफी समय तक चौदह दिन का पारायण चलता रहा। यरवदा जेल में मुझे सात दिन के पारायण की बात सूझी और एक शुक्रवार को उस पर अमल हुआ, इसलिए और उसी समय से पारायण-सप्‍ताह शुक्रवार से शुरू होता है।

पारायण की बात यहाँ देने के दो हेतु हैं। एक तो यह बताना कि गीता-भक्ति आज तक हममें से कुछ लोगों को कहाँ तक ले गई है और दूसरे, पाठकों को अभ्‍यास में प्रोत्‍साहन देने वाला रास्‍ता बताना। किंतु गीता गाकर ही निहाल नहीं हो सकते।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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