गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 82

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
तीसरा अध्याय
कर्मयोग


यह अध्‍याय गीता का स्‍वरूप जानने की कुंजी कहा जा सकता है। इसमें कर्म कैसे करना, कौन कर्म करना और सच्‍चा कर्म किसे कहना चाहिए, यह साफ किया गया है और बतलाया है कि सच्‍चा ज्ञान पारमार्थिक कर्मों में परिणत होना ही चाहिए।

अर्जुन उवाच
ज्‍यायसी चेत्‍कर्मणस्‍ते मता बुद्धिर्जनार्दन।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव।।1।।

अर्जुन बोले- हे जनार्दन ! यदि आप कर्म की अपेक्षा बुद्धि को अधिक श्रेष्‍ठ मानते हैं तो, हे केशव ! आप मुझे घोर कर्म में क्‍यों लगाते हैं ?

टिप्‍पणी- बुद्धि अर्थात समत्‍व बुद्धि।

वयामिश्रेणेव वाक्‍येन बुद्धिं मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्चित्‍य येन श्रेयोऽहमाप्‍नुयाम्।।2।।

अपने मिले-जुले वचनों से मेरी बुद्धि को आप शंकाग्रस्‍त- सी कर रहे हैं। अत: आप मुझे एक ही बात निश्‍चयपूर्वक कहिए कि जिससे मेरा कल्‍याण हो।

टिप्‍प्‍णी- अर्जुन उलझन में पड़ जाता है; क्‍योंकि एक ओर से भगवान उसे शिथिल हो जाने का उलाहना देते हैं और दूसरी ओर से दूसरे अध्‍याय के 49वें, 50 वें श्‍लोकों में कर्मत्‍याग का आभास मिलता है। गंभीरता से विचारने पर ऐसा नहीं है, यह भगवान आगे बतलायंगे।

लोकेऽस्मिन्द्विविद्या निष्‍ठा पुरा प्रोक्‍ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन सांख्‍यानां कर्मयोगेन योगिनाम्।।3।।

श्री भगवान बोले- हे पापरहित ! इस लोक में मैंने पहले दो अवस्‍थाएं बतलाई हैं - एक तो ज्ञानयोग द्वारा सांख्‍यों की, दूसरी कर्मयोग द्वारा योगियों की।

न कर्मणामनारम्‍भान्‍नैष्‍कर्म्‍यं पुरुषोऽश्‍नुते।
न च संन्‍यसनादेव सिद्धिं समधिगच्‍छति।।4।।

कर्म का आरंभ न करने से मनुष्‍य निष्‍कर्मता का अनुभव नहीं करता है और न कर्म के केवल बाहरी त्‍याग से मोक्ष पाता है।

टिप्‍पणी- निष्‍कर्मता अर्थात मन से, वाणी से और शरीर से कर्म न करने का भाव। ऐसी निष्‍कर्मता का अनुभव कर्म न करने से कोई नहीं कर सकता। तब इसका अनुभव कैसे हो सो अब देखना है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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