गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 263

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
10 : गीता-जयन्ती


पूना से ‘केसरी‘ वाले श्री जी.वी. केतकर लिखते हैः

‘‘इस वर्ष गीता-जयंती शुक्रवार 22 दिसंबर को पड़ती है। जो प्रार्थना मैं कई साल से आपसे करता आया हूं, वही इस बार भी दुहराता हूँ कि आप ‘हरिजन‘ में गीता और गीता-जयंती पर लिखें। एक बात और भी पिछले वर्ष कही थी, वह फिर से कहता हूँ। गीता पर आपने अपने व्याख्यानों में एक जगह कहा है कि जिन्हें 700 श्लोकों की पूरी गीता का पारायण करने का अवकाश नहीं, उनके लिए दूसरा और तीसरा अध्याय पढ़ लेना काफी है। आपने यह भी कहा है कि इन दो अध्यायों का भी सार किया जा सकता है। संभव हो तो आप समझाइए कि आप दूसरे और तीसरे अध्याय को क्यों आधार भूत मानते हैं? मैने भी दूसरे और तीसरे अध्याय के श्लोक गीता-बीज के रूप में प्रकाशित करके यही विचार जनता के सामने रखने का प्रयत्न किया है। अवश्य ही आपके इस विषय पर लिखने का प्रभाव अधिक पड़ेगा।"

अब तक मैंने श्री केतकर की बात नहीं मानी थी। मैं नहीं जानता कि जिस उद्देश्‍य से ये जयंतियां मनाई जाती हैं, वह इस तरह पूरा होता है। आध्यात्मिक विषयों में विज्ञापन के साधारण साधनों का संथान नहीं होता। आध्यात्मिक वस्तुओं का उत्तम विज्ञापन तो उनके अनुरूप कर्म ही होता है। मेरा विश्वास है कि सभी आध्यात्मिक ग्रंथों का प्रभाव दो बातें होने से पड़ता है। एक तो यह कि उनमें लेखकों के अनुभवों का सच्चा इतिहास हो और दूसरे उनके भक्तों का जीवन यथासंभव उनके उपदेशकों के अनुसार रहा हो। इस प्रकार ग्रंथकार अपने ग्रंथो में प्राण-संचार करते हैं और अनुयायी उनके अनुसार करके उनका पोषण करते हैं।

मेरी सम्मति में करोड़ों पर गीता, तुलसी कृत रामायण आदि पुस्तकों के प्रभाव का यही रहस्य है। श्री केतकर के आग्रह को मानने में मैं यह आशा रखता हूँ कि आगामी जयंती-उत्सव में भाग लेने वाले उचित भावना से प्रेरित होंगे और गीता के पवित्र संदेश के अनुसार अपना जीवन बनाने का दृढ़ निश्चय करेंगे। मैंने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि यह संदेश आसक्ति छोड़कर स्वधर्म पालन करना ही है।

मेरा यह मत रहा है कि गीता का मुख्य विषय दूसरे अध्याय में बताया गया है। ऐसा कहने का यह अर्थ नहीं है कि दूसरे अध्यायों की महिमा कम है। वास्तव में एक अध्याय का अपना महत्त्व अलग ही है। विनोबा ने गीता को ‘गीताई ‘ अर्थात ‘गीता-माता‘ कहकर पुकारा है। उन्होंने उसका बहुत ही सरल और ओजस्वी मराठी में पद्यानुवाद किया है। उसका छंद भी वही रखा है, जो मूल संस्कृत में है। हज़ारों के लिए गीता ही सच्ची माता है; क्योंकि वह कठिनाइयों में सान्त्वना-रूपी पौष्टिक दूध देती है।

मैंने उसे अपना आध्यात्मिक कोश कहा है; क्योंकि दुःख में मैं उससे कभी निराश नहीं हुआ हूँ। इसके अतिरिक्त, यह ऐसी पुस्तक है जिसमें साम्प्रदायिकता और धार्मिक अधिकार का नाम भी नहीं है। यह मनुष्य-मात्र को प्रेरणा देती है। मैं गीता को क्लिष्ट पुस्तक नहीं मानता। निःसन्देह पंडितों के तो जो चीज भी हाथ पड़ जाये, उसी में वे गहनता देख लेते हैं; परन्तु मेरी सम्मति में साधारण बुद्धि के मनुष्य को भी गीता के सरल संदेश को समझ लेने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। उसकी संस्कृत तो अत्यंत सरल है। मैंने गीता के कई अंग्रेजी अनुवाद पढ़े हैं, परन्तु एडविन ऑरनाल्ड के छन्दानुवाद की तुलना का एक भी नहीं है। इसका नाम भी उन्होंने स्वर्गीय गीत बहुत सुन्दर और उपयुक्त रखा है।

11 दिसंबर, 1939

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः