गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 38

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-बोध
पन्‍द्रहवां अध्‍याय

रात को
31-1-32

श्री भगवान बोले - इस संसार को दो तरह देखा जा सकता है -

  • एक इस तरह: जिसकी जड़ ऊपर है, जिसकी शाखा नीचे है और जिसके वेद रूपी पत्ते हैं; ऐसे पीपल के रूप में जो संसार को देखता है, वह वेद को जानने वाला ज्ञानी है।
  • दूसरी रीति यह है: संसार रूपी वृक्ष की शाखाएं ऊपर-नीचे फैली हुई हैं। उसके तीन गुणों से बढ़े हुए विषय-रूपी अंकुर हैं और वे विषय जीव को मनुष्‍य-लोक में कर्म के बंधन में डालते हैं। इस वृक्ष का स्‍वरूप नहीं जाना जा सकता, उसका आरंभ नहीं है, न अंत है, न कोई ठिकाना।

वह दूसरे प्रकार का संसार-वृक्ष है। उसने यद्यपि जड़ गहरी पकड़ी है, तथापि उसे असहकार रूपी शास्‍त्र से काटना चाहिए कि जिससे आत्‍मा को वह लोक-प्राप्‍त हो सके, जहाँ से उसे वापस चक्‍कर न करना पड़े। ऐसा करने के लिए वह निरंतर उस आदि- पुरुष को भजे कि जिसकी माया से यह पुरानी प्रवृत्ति पसरी हुई है। जिन्‍होंने मान-मोह को छोड़ दिया है, जिन्‍होंने संग-दोष को जीत लिया, जो आत्‍मा में लीन हैं, जो विषयों से अलग हो गये हैं, जिन्‍हें सुख-दु:ख समान है, वह ज्ञानी उस अव्‍यय पद को पाते हैं।

इस जगह सूर्य की या चंद्र को या अग्नि को तेज पहुँचाने की जरूरत नहीं पड़ती। जहाँ जाने के बाद लौटना नहीं रह जाता, वह मेरा परमधाम है।

जीव लोक में मेरा सनातन अंश जीव रूप में, प्रकृति में विद्यमान मन सहित छ: इंद्रियों को, आकर्षित करता है। जब जीव देह धारण करता है और तजता है तब, जैसे वायु अपने स्‍थल से गंधों को साथ लिये चलता है, यह जीव भी इंद्रियों को साथ लिये हुए विचरता है। कान, आंख, त्‍वचा, जीभ और नाक तथा मन इतनों का सहारा लेकर जीव विषयों का सेवन करता है। गति करते हुए, स्थिर, रहते, हुए या भोग हुए गुणों- वाले इस जीव को मोह में पड़े हुए अज्ञानी पहचानते नहीं, ज्ञानी पहचानते हैं। यत्‍न करने वाले योगी अपने में विद्यमान उस जीव को पहचानते हैं, पर समभाव रूपी योग को नहीं साधा है, वह यत्‍न करता हुआ भी उसे पहचानता नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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