गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
चौहदवां अध्याय
गुणत्रयविभागयोग
श्रीभगवान बोले- ज्ञानों में जिस उत्तम ज्ञान का अनुभव करके सब मुनियों ने यह शरीर छोड़ने पर परम गति पाई है वह मैं तुझसे फिर कहूंगा।
इस ज्ञान का आश्रय लेकर जिन्होंने मेरे भाव को प्राप्त किया है उन्हें उत्पत्ति काल में जन्मना नहीं पड़ता और प्रलयकाल में व्यथा भोगनी नहीं पड़ती।
हे भारत! महद्ब्रह्म अर्थात प्रकृति मेरी योनि है। उसमें मैं गर्भाधान करता हूँ और उससे प्राणी मात्र की उत्पत्ति होती है।
हे कौंतेय! सब योनियों में जिन-जिन प्राणियों की उत्पत्ति होती है उनकी उत्पत्ति का स्थान प्रकृति है और उसमें बीजारोपण करने वाला पिता- पुरुष- मैं हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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