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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
29. ऊखल से बँधे हुए दामोदर यमलार्जुन बने हुए कुबेर पुत्रों पर कृपापूर्ण दृष्टिपात्र
कज्जलमिश्रित अश्रुप्रवाह उनके कपोलों को सिक्त कर रहा है; आकुल नेत्र बारंबार आभीर सुन्दरियों से कुछ मूक विनय, दया-याचना-सी कर रहे हैं; कुन्तलराशि मुखचन्द्र पर बिखर गयी है-इस प्रकार श्रीकृष्णचन्द्र अतिशय करुण-अवस्था में ऊखल से बँधे खड़े हैं। गोपसुन्दरियाँ उन्हें घेरे खड़ी हैं। सभी चाहती हैं- व्रजेश्वरी अब द्रवित हो जायँ, स्वल्प अपराध के लिये पर्याप्त दण्ड वे अपने नीलमणि को दे चुकीं। एक ने यशोदारानी से बन्धन खोल देने की प्रार्थना की-
दूसरी समझाने लगी-
तीसरे ने भी समझाया-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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