विषय सूची
श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
5. पूतना-मोक्ष तथा पूतना के अतीत जन्म की कथा
तथा अभी भी वे रोहिणी एवं अन्य गोपियों के साथ बैठी हुई शिशु को उसी पालने पर लिटा कर मुख चूम-चूमकर गीता गा रही हैं। राक्षसी उनसे कुछ दूर पर खड़ी हो जाती है। किसी अज्ञात प्रेरणा से नन्दरानी की दृष्टि उस ओर आकर्षित होती है। हठात् एक अतिशय सुन्दरी दिव्य रमणी को देखकर वे चौंक पड़ती हैं, बरबस उठ पड़ती हैं, अभ्यर्थना करने लग जाती हैं-
पूतना के मुख पर एक पैशाचिक उल्लास छा जाता है तथा वह मधुमिश्रित स्वर में अपना परिचय देने लगती है-
“गोपिकाओं! मैं मथुरावासिनी ब्राह्मण-पत्नी हूँ। अभी संदेश वाहकों के मुख से परम मंगल सूचक समाचार सुन पायी कि नन्दराय को इस वृद्ध वयस् में सर्वसुलक्षणसम्पन्न पुत्र हुआ है; बस, यह सुनते ही मैं उसे देखने और अभिलषित आशीर्वाद करने चली आयी।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (ब्रह्म. वै. कृष्णजन्मखण्ड अ. 10)
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