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उस दिन भी आकाश से बूँदें झर रही थीं, आज भी मेघ मुक्ता-सद्दश जलबिन्दुओं की वर्षा कर रहे हैं। श्रीकृष्णचन्द्र की पिछली प्रथम वर्षगाँठ के समय जो कुछ जैसे हुआ था, आज इस वर्षगाँठ के दिन भी सब कुछ सर्वथा वैसे ही हो रहा है। उस दिन गोपपुरसुन्दरियों ने देखा था-
- आजु भोर तमचुर के रोल।
- गोकुल मैं आनंद होत है, मंगल-धुनि महराने टोल।।
- फूले फिरत नंद अति सुख भयौ, हरषि मँगावत फूल-तमोल।
- फूली फिरति जसोदा तन-मन, अबटि कान्ह अन्हवाइ अमोल।।
- तनक बदन, दोउ तनक-तनक कर, तनक चरन पोंछति पट झोल।
- कान्ह-गरें सोहति मनि-माला, अंग अभूषन अँगुरिनि गोल।।
- सिर चौतनी, डिठौना दीन्हौ, आँखि आँजि पहिराइ निचोल।
- स्याम करत माता सौं झगरौ, अटपटात कलवल करि बोल।।
- दोउ कपोल गहि कै मुख चूमति, वरष-दिवस कहि करति कलोल।
- सूर स्याम व्रज-जन-मन-मोहन, बरष-गाँठि कौ डोरा खोल।।
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