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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
5. पूतना-मोक्ष तथा पूतना के अतीत जन्म की कथा
इस प्रकार सभी विमुग्ध हो गये; किसी ने उसे नहीं रोका। निर्बाध वह वहाँ जा पहुँचती है, जहाँ व्रजरानी शिशु को लाड़ लड़ा रही हैं-
आज दिन में व्रजरानी ने अपने शिशु का पलना-झूलन उत्सव किया था-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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