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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
59. श्री कृष्ण का प्रथम गोचारण-महोत्सव
उस समय की बात है जब गोपेन्द्र नन्द का व्रजपुर बृहद्वन में बसा था। श्रीकृष्णचन्द्र वृन्दाकानन नहीं पधारे थे। कलिन्दकन्या के उस पार ही लीला-रस का प्रवाह सीमित था। पुर-सुन्दरियों के प्रांगण में ही वे खेला करते थे। स्वभाव में चञ्चलता अवश्य आ चुकी थी। अचानक एक दिन जब भुवन भास्कर वृक्षों से ऊपर उठ आये थे, वे खेलते हुए अपने गोष्ठ में जा पहुँचे। वहाँ अभी गोदोहन समाप्त नहीं हुआ था। पंक्तिबद्ध गायों के थनों से क्षरित दुग्ध का ‘घर-घर’ नाद उन्हें आकर्षित करने लगा। कौतूहल भरी दृष्टि से देखते हुए वे दूर बहुत दूर तक चले गये। एक वृद्ध गोप गाय दुह रहा था। साथ ही मन्द-मन्द स्वर में उनके ही बालचरित के गीत उसके कण्ठ-निर्झर से झर-से रहे थे। पर अब गाय सहसा चिहुँक उठी। नीलसुन्दर को देख कर हम्बारव करने लग गयी। वृद्ध गोप ने भी पीछे की ओर दृष्टि डाली। नन्द नन्दन उसे भी दीख गये। फिर तो गोदोहन हो सके, यह सम्भव ही कहाँ था। बस, निर्निमेष नयनों से वह नन्द नन्दन की ओर देखता ही रह गया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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