श्रीकृष्ण गीतावली
5. गोचारण अथवा छाक-लीला
राग गौरी
(एक बार श्यामसुन्दर दाऊ भैया और अपने सखाओं के साथ गौ चराने वन में गये हुए थे। घर से छाक आने में देर हो गयी, भूख बहुत लगी थी। बाल स्वभाव से सोचा कि जैसे दही मथने से मक्खन निकलता है, वैसे ही जल बिलोने से भी निकल जाएगा। वे बार-बार पानी को मथ-मथकर उसको झागसहित पीने लगे, पर उससे न तो भूख मिटी न पेट भरा; तब यह मन में आया कि गायों को बुलाकर उनके थनों में मुँह लगाकर दूध पीयें। इसी उदेश्य से वे गायों को पुकारने लगे-) कन्हैया ने गोवर्धन पर चढ़कर गायों को पुकारा और बोले कि पानी को मथ-मथकर तीन-चार बार पी लिया, पर भूख नहीं मिटी। घैया (गायों के थन में मुँह लगाकर दूध पीने) की भाँति अघाया भी नहीं (पेट भी नहीं भरा) ।। 1 ।। (जब गायें नहीं आयीं,) तब कन्हैया पर्वत की चोटी पर चढ़ गये और चकित-चित होकर (इधर-उधर) देखने लगे (गौएँ क्यों नहीं आयीं)। इतने में बलदाऊ भैया ने बड़े हित की बात कही (कि वंशी बजाओ तो गायें आ जायँगी। यह सुनकर) कन्हैया ने छड़ी के सिर में पीताम्बर बाँधकर, उसे घुमाते हुए (वंशी-ध्वनि करके) गायों को (फिर) बुलाया। वंशी की मनोहर ध्वनि को सुनकर गायें बड़े वेग से दौड़ आयीं ।। 2 ।। (इतने में ही दूर से देखकर बोले देख-देख बलदाऊ भैया! मेरी मैया की भेजी हुई छाक दूर से आती दिखायी देती है। (यह सुनते ही) सब सखा किलक-किलककर मोर की तरह नाचने लगे, बंदर और हरिन की भाँति कूदने लगे ।। 3 ।। (छाक आ पहुँची, तब) खेलते हुए उसे खाने लगे, एक-दूसरे को ललचाने लगे, (परस्पर) छीना-झपटी करने लगे, कहने-सुनने लगे और बेईमानी करने लगे। तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीबालकृष्ण की बालकेलिका आनन्द देखकर देवता अपने स्वामी (इन्द्र) के साथ पुष्पों की वर्षा करने लगे ।। 4 ।। |
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