भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
धनुर्भंग
‘बाण चढ़ाते हैं?’ एक गोपकुमार ने पूछा। स्पष्ट तात्पर्य था कि जब शर-सन्धान होता है तो लक्ष्य भी कुछ होता ही होगा। ‘महाराज कहते हैं कि इस महाधनुष को बलि चाहिये। बलि दिये बिना इसकी ज्या उतारी नहीं जा सकती।’ नागरिक ने सिर झुका लिया– ‘महाराज बाण छोड़ देते हैं और दर्शकों में–से कोई चीत्कार करके गिर पड़ता है। किसी को पता नहीं होता कि कौन बलि-पशु बन जायेगा। इस महोत्सव में आना सबका अनिवार्य है। न आने पर राजदण्ड मिलेगा और आने पर कोई नहीं जानता कि कल उसी की मृत्यु होगी या नहीं।’ सहसा उस नागरिक के नेत्र भर आये। वह भीड़ में पीछे हट गया। एक साथ सबके मन में एक ही बात आयी– ‘कंस ने इन्हें धनुर्याग में बुलाया है। इन्हें मारने का प्रयत्न बहुत कर चुका है वह। कल वह यह कुटिल प्रयत्न करने वाला है?’ बात कंस के मन न आयी हो, ऐसा नहीं था। उसने भी सोचा था– ‘मल्ल-क्रीडा के पश्चात धनुषोत्तोलन करेगा। उसको अपने लक्ष्यवेधन पर विश्वास है। दूसरा कोई सफल न हो सका तो वह स्वयं करेगा यह प्रयत्न।’ ‘लेकिन कंस अपने प्रयत्न के सम्बन्ध में सशंक है। धनुष बहुत भारी है। उसे उठाने, चढ़ाने में वह अधमरा हो जाता है। स्वेद से लथपथ हो उठता है। उस समय के शर-सन्धान पर भरोसा करना वह ठीक नहीं मानता। इसीलिए उसने किसी से-पुरोहित सत्यक जी तक से अपने इस प्रयत्न की चर्चा नहीं की है। ‘हम धनुष देखेंगे।’ गोपकुमारों को नागरिक की बात सुनकर कोई भय नहीं लगा। ‘धनुष क्या अपने गिरिराज से भारी होगा?’ अर्जुन ने ॠषभ से धीरे से पूछा। ‘हम सब मिलाकर उठा लेंगे उसे।’ तेजस्वी ने वृद्धों जैसी गम्भीरता से कहा– ‘दाऊ दादा अकेले ही उठा लेंगे।’ ‘तुम सब झगड़ना नहीं, यह बाबा ने चलते समय कहा है।’ भद्र ने सबको सचेत किया– ‘कन्हाई ही उठा ले तो इसे उठाने देना। अन्यथा झगड़ेगा कि मैंने ही उठाया है।’ गोप बालकों को सदा लगा कि उनका यह इन्दीवन सुन्दर सुकुमार सखा सबसे दुर्बल है; किन्तु सबसे नटखट है प्रत्येक कार्य में वह आगे कूदता है। कोई दूसरा सम्मिलित हो जाय तो उससे झगड़ेगा। अत: इसको पहले अवसर दे देना ही अच्छा रहता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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