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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
59. श्री कृष्ण का प्रथम गोचारण-महोत्सव
‘अहो! जननी यशोदा का प्रेमावेश तो देखा! वे पुकार रही है- बलराम! बेटा! तू नीलमणि के आगे जा। अरे सुबल! तू मेरे लाल के पीछे हो जा। अरे ओ श्रीदाम! ओ सुदाम! पुत्रो! तुम दोनों इसके दोनों पार्श्व में अवस्थित हो जाओ। अरे शिशुओं! सुनते हो, देखो, तुम अपने इस आत्मीय सुहृद नीलसुन्दर को सब ओर से आवृत करके चलो! इस भाँति स्नेहविह्वल मैया प्रत्येक शिशु का हाथ पकड़ कर आदेश दे रही है, साथ ही प्रत्येक को यथा योग्य श्रीकृष्ण -सेवा सम्बन्धी उन-उन कार्यों का निर्देश करके सौभाग्य दान कर रही है और यह सब करते समय भी उनकी आँखें निरन्तर झर-झर बरसती रहती हैं।
बस, इससे अधिक वाणी की सामर्थ्य नहीं जो और कह सके। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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