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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
31. कुबेर-पुत्रों को स्वरूप प्राप्ति तथा उनके द्वारा श्रीकृष्णचन्द्र का स्तवन तथा प्रार्थना; श्रीकृष्ण की उनके प्रति करुणापूर्ण आश्वासन वाणी
नलकूबर-मणिग्रीव कृतार्थ हो गये। उनके प्राण नाच उठते हैं-‘कदाचित एक दो क्षण भी और यहाँ विराम करने की आज्ञा मिल जाती! पर नहीं अब समय नहीं श्रीकृष्णचन्द्र के समीप में ही खड़े उन गोपशिशुओं के नेत्रों में भय भरा है, यह तो प्रभु के प्रियतम सखाओं के प्रति अपराध हो रहा है।’- कुबेरपुत्र चलने के लिये प्रस्तुत हो गये। उन्होंने ऊखल में बँधे श्रीकृष्णचन्द्र की परिक्रमा की, उन्हें बार-बार प्रणाम किया; फिर जाने की सूचना देकर उत्तर दिशा की ओर चल पड़े-
देवर्षि के प्रति उनके हृदय में अपरिसीन कृतज्ञता उमड़ आयी है। व्रजपुर के कण-कण के प्रति उनके राम-रोम ‘धन्य-धन्य’ की घोषणा हो रही है-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।10।43)
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