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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
30. यमलार्जुन के अतीत जन्म की कथा; यमलार्जुन-उद्धार
पर ये दोनों कुबेरपुत्र? आह! इन्हें तो देवर्षि के आगमन का भान होकर भी भान नहीं। वैसे ही नग्न, उन्मत्त रहकर दोनों भुजा उठाये अप्सराओं को पुनः जल में ही अत्यन्त शीघ्र उतर आने के लिये चीत्कार कर रहे थे! एक अचिन्त्य शक्ति ने देवर्षि की दृष्टि उनकी ओर फेर दी। उन्होंने देखा, देखते ही अन्तःकरण करुणा से आर्द्र हो उठा- ‘ओह! कहाँ तो ये कुबेरपुत्र और कहाँ इनकी यह दशा! इतना अधःपात!’ तत्क्षण देवर्षि ने उन्हें परिशुद्ध कर देने की, साथ ही उनके अनादि भवप्रवाह का भी अन्त कर देने की व्यवस्था कर दी। अपने परम अनुग्रह को क्रोध के आवरण में छिपाकर, उसे शाप का रूप देकर वे पुकार उठे- ‘जाओ, कुबेरतनय! तुम दोनों अपनी इस जडता के अनुरूप ही योनि ग्रहण करो-वृक्ष बनकर जन्म धारण करो; किंतु वृक्ष बनकर भी तुम्हारी स्मृति नष्ट नहीं होगी, मेरे अनुग्रह से तुम्हें इस अतीत जीवन का सतत स्मरण रहेगा। सदा पश्चाताप की अग्नि में जलते रहोगे और फिर सौ देववर्षों के अनन्तर श्रीकृष्ण के चरणारविन्द स्पर्श का परम सौभाग्य तुम्हें प्राप्त होगा। उस पुनीत स्पर्श से तुम्हें पुनः देवत्व प्राप्त होगा, पुनः देवशरीर में तुम लौटोगे। साथ ही परम दुर्लभ हरिभक्ति भी तुम्हें मिल जायगी। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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