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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
13. माँ यशोदा का शिशु श्रीकृष्ण के मुख में विश्वब्रह्माण्ड को देखना तथा श्रीराम कथा को सुनकर श्रीकृष्ण में श्रीराम का आवेश
अब व्रजरानी के नेत्र छल-छल करने लगते हैं और वे किंचित अस्फुट स्वर में कहने लगती हैं-‘नाथ! प्रातःकाल की बात है, नीलमणि तब तक सोया हुआ था; मैं उसे दूर से देख रही थी, साथ ही गृहकार्य का समाधान भी करती जा रही थी। अकस्मात स्नेहावेश में मेरे स्तन झरने लगे। मैं दौड़ी, नीलमणि को गोद में उठा लिया, उसे स्तनपान कराने लगी। उसे भी क्षुधा थी, बड़ी ललक से वह दूध पी रहा था। प्रायः उसकी तृप्ति भी हो चली थी। पर सहसा उसने स्तनाग्र को मुख से निकालकर अँगड़ाई ली। मैं उसका स्वभाव जानती हूँ, वह अभी भी किंचित क्षुधित था। इसलिये मैं बार-बार कपोलों का चुम्बन कर पुनः स्तन्यपान के लिये प्रोत्साहित करने लगी। इतने में उसने जम्हाई ली। ओह! उस समय, नारायण! नारायण!! मैंने उसके उस छोटे से मुख विवर में निश्चय ही सम्पूर्ण जगत् को अवस्थित देखा!!!’
यशोदा रानी ने व्रजेश्वर के हाथों को अपने हाथों में ले लिया और कुछ क्षण के लिये सर्वथा मौन हो गयीं। नेत्र निमीलित हो गये। व्रजेश्वर भी अर्द्धनिमीलित नेत्र हुए यह घटना सुन रहे थे। अब पुनः व्रजरानी कहने लग जाती हैं-‘सुनो! और भी बात है। दिनभर मैं चिन्ता में निमग्न रही। मेरे विस्मय का, भय का पारावार न था। मन में इच्छा होती-सूचना देकर गोष्ठ से तुम्हें तुरंत बुला लूँ, सारा समाचार कहूँ; पर उसी समय नीलमणि हँसता हुआ मेरी गोद में आ जाता और उतने समय के लिये मैं इस घटना को भूल जाती। इसी तरह संध्या हो गयी। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।7।36)
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