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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
13. माँ यशोदा का शिशु श्रीकृष्ण के मुख में विश्वब्रह्माण्ड को देखना तथा श्रीराम कथा को सुनकर श्रीकृष्ण में श्रीराम का आवेश
व्रजेश्वर जानते हैं-राम-कृष्ण की अनिष्ट-आशंका के अतिरिक्त अन्य किसी भी कारण से व्रजरानी विक्षुब्ध होतीं ही नहीं। इसलिये वे बोल उठे-
‘व्रजरानी! बालकों का अनिष्ट होने के भय से मैंने जो इन्हें सर्वथा अन्तर्गह में ही रोक रखने का परामर्श दिया था, उसका परिपालन हो रहा है तो?’
‘पालन तो हो ही रहा है; परन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा है, यह उपाय भी व्यर्थ है।’ सुनते ही गोपेन्द्र के मुख पर प्रस्वेद-कण झल-झल करने लगते हैं। अविलम्ब भग्न स्वर में वे पुकार उठते हैं-
‘हैं! यह किस प्रकार?’ |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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