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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
12. श्रीकृष्ण की मनोहर बाललीलाएँ
जननी अशोक पूजन भूल गयीं। अर्घ्यपात्र हाथों में ही रह गया। निर्निमेष नयनों से नीलमणि का अद्भुत अस्फुट गायन, रुनझुन-रुनझुन ताल समन्वित नर्तन देखती हुई न जाने कितने समय के लिये वे आत्म विस्मृत हो गयीं। इसके दूसरे दिन प्राणों की उत्कण्ठा लिये व्रजेन्द्र आये। पुत्र का वह मनोहर नृत्य उन्होंने देखना चाहा। किंतु पिता को देखकर श्रीकृष्णचन्द्र किंचित संकुचित होने लगे। जननी ने उन्हें गोद में उठा लिया, कपोलों को बारंबार चूमकर वात्सल्य की धारा में स्नान कराने लगीं। जब इस रसधारा में वह संकोच बह चला, तब जननी उन्हें पुनः मणिभूमि पर खड़ा करके प्रोत्साहन देने लगीं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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