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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
78. दावानल-पान के अनन्तर श्रीकृष्ण का व्रज में लौटना और व्रजसुन्दरियों का उनका दर्शन करके दिनभर के विरह-ताप को शान्त करना
कितनी देर लगती गोष्ठ पहुँचने में; क्योंकि अब पथ में क्रीड़ा तो होगी नहीं। बस, यह रहा सामने व्रजपुर का तोरण द्वार और श्रीबलराम के साथ नीलसुन्दर गोष्ट में प्रविष्ट हो रहे हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।19।15)
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