श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
1. जन्म-महोत्सव
रे सुकुमार बालक! रे व्रजराजकुमार! तू बड़ा होकर चिरकाल तक हम लोगों की रक्षा कर। बाहर समस्त व्रज गोपों की मण्डली गायों सहित आ पहुँची है-
नन्दजी सबसे यथा योग्य मिलते हैं। आनन्द में उन्मत्त से हुए गोप हल्दी-दही छींटते हुए विविध भाव-भंगिमाओं का प्रदर्शन कर रहे हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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