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- श्रीदामा हरि पर चढ़ि चले।
- को ठाकुर, जो खेल मैं रलै।।
- बल प्रलंब पर सोहत ऐसें।
- सो उपमा अब कहियत कैसें।।
- बट भंडीर तीर लगि चढ़े।
- लै गए बालकेलि रस बढ़े।।
इसके पश्चात तो कुछ क्षणों में ही बहुत-सी घटनाएँ घटित हो गयीं- ‘श्रीकृष्णचन्द्र एवं उनके दल के समस्त शिशु विजेताओं को पीठ पर धारण किये हुए, अवरोहण स्थान का स्पर्श कर पीछे की ओर लौट चली; किंतु प्रलम्ब नहीं लौटा, अपितु वह अवरोहण की सीमा से पार चला गया। इतनी देर साथ रहकर प्रलम्ब ने यह देख लिया था कि नन्द नन्दन का अपहरण उसके द्वारा सम्भव ही नहीं, इतना दुर्धर्ष है यह श्याम वर्ण शिशु; और इसलिये अत्यन्त द्रुत वेग से केवल रोहिणी नन्दन को ही ले भागने के उद्देश्य से वह आगे बढ़ गया। अवश्य ही कुछ पद बढ़ते ही उसे प्रतीत हुआ- ‘ओह! इस बालक में तो सुमेरु पर्वत से भी अधिक भार है। इस शिशु-वेश से तो मैं इसे बहन कर ही नहीं सकता।’
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