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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
76. प्रलम्बासुर-उद्धार
अब श्रीकृष्णचन्द्र ने क्रीड़ा का नाम एवं विवरण सबको सुना दिया। क्रीड़ा है ‘हरिणाक्रीड़न’ नामक। दो-दो बालक हिरन की भाँति चौकड़ी भरते हुए एक निर्दिष्ट स्थान की ओर चलेंगे। जो पहले उस लक्ष्य को स्पर्श कर ले, वह विजेता है। फिर उस विजेता को वह पराजित बालक अपनी पीठ पर चढ़ा कर या तो मुख्य स्थान पर ले आये अथवा एक निर्दिष्ट स्थान तक पीठ पर चढ़ाये हुए ले जाय और ले आये। यह विवरण समाप्त होते-न-होते गोप शिशुओं ने तो खेल आरम्भ कर दिया। दो-दो की अगणित जोड़ियाँ एक साथ उठ गयीं। और फिर तो देखने ही योग्य है उन बालकों के द्वारा हरिणों का अनुकरण। इस एक क्रीड़ा को ही उन सबों ने न जाने कितने विविध रूपों में सजा दिया- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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