|
प्रतिदिन की भाँति आज भी जननी एवं श्रीरोहिणी ने राम-श्याम का संलालन किया। भवन में पधार जाने पर समय के अनुरूप एवं दोनों पुत्रों की रुचि के अनुसार समस्त वस्तुओं की व्यवस्था की गयी। परिधेय वस्त्र, भोजन सामग्री, पेय पदार्थ सभी राशि-राशि एकत्रित कर दिये गये एवं राम-श्याम की मनुहार आरम्भ हुई। दोनों माताओं ने उद्वर्तन लगा कर, स्नान कराकर एवं अन्य विविध उपचारों से अपने पुत्रों की वन विहार जन्य समस्त श्रान्ति हर ली। अतिशय मनोहर सुन्दर वस्त्र धारण कराये, चन्दन से श्रीअंगों को चर्चित किया, दिव्य पुष्पों की मालाएँ धारण करायीं। इतना हो जाने के अनन्तर सुन्दर आसन पर उन्हें विराजित कर परम सुखादु भोजन-सामग्रियाँ माताओं ने अपने हाथों परोसीं तथा राम-श्याम ने भी जननी का लाड़ स्वीकार कर एक-एक वस्तु का स्वाद लिया। भोजन से परितृप्त होकर होते-होते ही नीलसुन्दर की, बलराम की आँखें घुलने लगीं और तब व्रजरानी ने दोनों को ही अतशय सुन्दर शय्या पर पधराया। बस, फिर तो देखते-देखते राम-श्याम के दृग निमीलित हो गये। जननी का अंक उपधान बना और वे दोनों सुख की नींद सो गये-
- तयोर्यशोदारोहिण्यौ पुत्रयो: पुत्रवत्सले।
- यथाकामं यथाकालं व्यधत्तां परमाशिष:।।
- गताध्वानश्रमौ तत्र मज्जनोन्मर्दनादिभि:।
- नीवीं वसित्वा रुचिरां दिव्यस्नग्गन्धमण्डितौ॥
- जनन्युपहृतं प्राश्य स्वाद्वन्नमुपलालितौ।
- संविश्य वरशय्यायां सुखं सुषुपतुर्व्रजे॥[1]
|
|