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व्रजपुर में क्या हो रहा है, क्या हुआ है यह कोई उन्हें सुना दे तो भले ही मनोयोग पूर्वक उसे सुन लें वह भी यदि घटना नीलमणि से सम्बद्ध हो तो। नहीं तो, मन से, शरीर से राम-श्याम को लेकर वे अपने भााव में बह रही हैं। वन से आते हुए नीलमणि, बलराम उन्हें देख जाने चाहिये अथवा नीलमणि गोचारण के लिये वन में चले गये, यह भावना उन्हें छू ले। फिर मैया का, श्री रोहिणी का मन कहाँ उलझा है- नीलसुन्दर को वे चन्द्रदर्शन करा रही हैं कि गोचारण के प्रसंग में छाक भोजन करा रही हैं अथवा मण्डप सजाकर नीलसुन्दर के ब्याह की कल्पना में तन्मय हैं यह जानना सहज नहीं है। इसीलिये श्रीकृष्णचन्द्र के अंगों के अन्तराल में वस्तुतः व्यक्त हुआ कैशोर व्रजेन्द्र गेहिनी के लिये कोई विशेष महत्त्व नहीं रखता। उनके लिये तो वह कितनी बार आता है और फिर तत्क्षण ही नीलसुन्दर उन्हें स्तनपान करा देने के लिये क्रन्दन करते हुए दीखने लग जाते हैं। अस्तु, मैया इस समय भी अपने भाव में मग्न रह कर ही प्रतीक्षा में बैठी हैं। और यह लो, देखो, उनके कर्ण पुटों में भी वंशी-रव प्रविष्ट हुआ तथा जननी एवं श्रीरोहिणी उधर ही दौड़ चलीं। नहीं-नहीं, राम-श्याम तो उनके भुज पाश में बँध चुके-
- पहुँचे आइ स्याम ब्रजपुर में, घरहिं चले मोहन-बल आछे।
- सूरदास प्रभु दोउ जननी मिलि, लेति बलाइ बोलि मुख ‘बाछे’।।
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