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देखते-देखते वहाँ की सम्पूर्ण भूमि ताल फलों से, भग्न ताल वृक्षो के अग्रभाग से एवं दैत्यों के मृत देहों से पट गयी। क्षितितल ने एक विचित्र-सी शोभा धारण कर ली- वैसी शोभा जो विविध वर्णों के मेघ से आवृत होने पर आकाश की हो जाती है!-
- तत: कृष्णं च रामं च ज्ञातयो धेनुकस्य ये।
- क्रोष्टारोऽभ्यद्रवन् सर्वे संरब्धा हतबान्धवा:॥
- तांस्तानापतत: कृष्णो रामश्च नृप लीलया।
- गृहीतपश्चाच्चरणान् प्राहिणोत्तृणराजसु॥
- फलप्रकरसंकीर्णं दैत्यदेहैर्गतासुभि:।
- रराज भू: सतालाग्रैर्घनैरिव नभस्तलम्॥[1]
- राम-स्याम प्रभु लीला बाढ़े, सठ मारे इक भुजा उखार।
- तोरत सीस, सीस सौं फोरत, ढोरत धर धरनी के भार।।
- इक पग पकरि उच्च गहि पटकत छी मुरकत खल अमर-अगार।
- जिमि घन सघन गगन महँ छाए, भ्रमत भयानक इमि अनुहार।।
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