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उस मृत देह के प्रबल आघात से ताल का वह उत्तुंग एवं अत्यन्त सुपुष्ट वक्ष तड़-तड़ कर, चूर्ण-विचूर्ण होकर गिर पड़ा। केवल वह गिरा, इतना ही नहीं, उसने अपने पाश्ववर्ती सटे वृक्ष को भी प्रकम्पित कर तोड़ डाला। पुनः उसने तीसरे को, तीसरे ने चौथे पाश्ववर्ती ताल को- इस प्रकार एक दूसरे को धराशायी करते हुए न जाने कितने ताल वृक्ष टूटकर खण्ड-खण्ड हो गये। रोहिणी नन्दन की तो यह एक क्रीड़ा हुई, एक साधारण-सा खेल खेलते हुए ही राम ने उस मृत देह को फेंका था। किंतु वह आघात इतना भीषण था कि उस वन के समस्त ताल-वृक्ष ही प्रकम्पित हो उठे- मानो किसी अत्यन्त प्रबल झंझावात के वेग से वे विताड़ित हो गये हों-
- तेनाहतो महातालो वेपमानो बृहच्छिरा:।
- पार्श्वस्थं कम्पयन् भग्न: स चान्यं सोऽपि चापरम्॥
- लीलयोत्सृष्टखरदेहहताहता:।
- तालाश्चकम्पिरे सर्वे महावातेरिता इव॥[1]
- एहि बिधि नृप! धेनुक बल मारयौ।
- गिरयौ तार लै बहु छिति डारयौ।।
- तार ताल फल गिरे अनेका।
- को गनि सक अस काहि बिबेका।।
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