|
और इस समय वह देखो, वहाँ नन्द-प्रांगण में गो-चारण के लिये वन जाने से पूर्व व्रजेश्वरी अपने नीलमणि को कलेवा करा रही है, नीलमणि भी अन्यान्य खाद्य-सामग्रियों को किंचिन्मात्र होठों से स्पर्श कराकर अब केवल नवनीत का आस्वाद ले रहे हैं कर-किस लय पर जननी के द्वारा रक्खे हुए नवनीत-ग्रास को मुख में भरकर वे पुनः अपना हस्त-कमल सामने कर देते हैं एवं मैया पुनः उस पर ग्रास सजा देती हैं-
- हरि व्रज-जन के दुख-बिसरावन।
- कहाँ कंस, कब कमल मँगाए, कहाँ दवानल-दावन।।
- जल कब गिरे, उरग कब नाथ्यौ, नहिं जानत ब्रज-लोग।
- कहाँ बसे इक दिवस-रैनि भरि, कबहिं भयौ यह सोग।।
- यह जानत हम ऐसेहिं ब्रज में, वैसेहिं करत बिहार।
- सूर स्याम जननी सौं माँगत माखन बारंबार।।
|
|