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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
70. कालिय द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति और श्रीकृष्ण की उसे ह्नद छोड़कर समुद्र में चले जाने की आज्ञा तथा गरुड़ के भय से मुक्ति दान; कालिय एवं उसकी पत्नियों द्वारा श्रीकृष्ण की अर्चना तथा उनसे विदा लेकर रमणक-द्वीप के लिये प्रस्तान
कालिय के नेत्रों से भी बिन्दु झरने लगे। पर व्रजेन्द्र नन्दन की वह वीणा विनिन्दित वाणी तुरंत कालिय के कण-कण को झंकृत कर उठी। वे कहने लगे-
‘कालिय! सुनो, जिनके भय से तुम रमणक द्वीप को छोड़ कर वृन्दावन के इस ह्नद में निवास कर रहे हो, वे गरुड़ अब, तुम्हारे मस्तक को मेरे पद-चिह्नों से चिह्नित देख कर अपने मुँह का ग्रास तुम्हें नहीं बनायेंगे।’
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।16।63)
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