श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
1. जन्म-महोत्सव
इधर व्रजेश्वर ब्राह्मणों को दक्षिणा दे रहे हैं। व्रजराज ने उस दिन बीस लाख गायें ब्राह्मणों को दीं। गायों के सींग सुवर्ण पत्रों से, खुर रजत पत्रों से मढ़े हैं; प्रत्येक कण्ठ-देश में बहुमूल्य मणियों की माला है। सभी नवप्रसूता हैं। व्रजेश की आज्ञा से अविलम्ब तिल के सात पर्वत निर्मित हुए, उन पर्वतों पर सघन पत्रावली की तरह रत्न बिछा दिये गये, फिर पर्वतों को सुनहले वस्त्रों से सर्वत्र ढक दिया गया। ये पर्वत भी ब्राह्मणों के लिये ही बने थे, उन्हें दान कर दिया गया। व्रजराज जिस समय इस पर्वत दान का संकल्प पढ़ने लगे, उस समय आश्चर्य में भरे हुए ब्राह्मण कुछ क्षण अवाक् रह गये। अब समस्त व्रज सजाया जा रहा है। व्रज का प्रत्येक प्रासाद, प्रासाद का प्रत्येक गृह, द्वार, प्रांगण, गृहद्वार-प्रांगण का कोना-कोना तक पहले झाड़ दिया गया, पश्चात् चन्दन-वारि से धो दिया गया। फिर सर्वत्र पुष्प-रथ-सार (इत्र) छिड़क दिया गया। रंग-बिरंगे वस्त्र एवं सुकोमलतम पल्लवों के बंदनवार बाँधे गये। चित्र-विचित्र ध्वजा-पताकाएँ यथा स्थान फहरा रही हैं। पुप्प माला की लड़ियों मणिमय स्तम्भों एवं गवाक्ष-रन्ध्रो से बाँध दी गयी हैं। प्रत्येक द्वार पर आम्रपल्लव समन्वित जलपूर्ण मंगल घट है। हरिद्रा, दूब, अक्षत, दधि और कुमकुम से प्रत्येक द्वार देश चित्रित है। स्थन-स्थान पर मोतियों के चैक पूरे गये हैं। व्रजेश के ऐसे सजे हुए तोरण-द्वार पर एक ओर ऊँचे आसन पर विराजमान ब्राह्मण आशीर्वादात्मक मंगल वचनों का पाठ कर रहे हैं। उनसे कुछ दूर पर सूत पुराण का पारायण कर रहे हैं। उनसे कुछ हटकर मागध व्रजेश-वंशावली का कीर्तन कर रहे हैं। उनसे सटी हुई बंदी जनों की पंक्तियाँ हैं, वे मधुर स्वर में व्रजेश की स्तुति गा रहे हैं। ब्राह्मणों के ठीक सामने दूसरी और संगीतज्ञों का दल है, वे वीणा के स्वर में स्वर मिला करसुमधुर रागिनी अलाप रहे हैं। उनसे कुछ दूर पर भैरी बताने वालों का दल है। इनसे कुछ हटाकर दुन्दुभियाँ बज रही हैं। इनसे कुछ दूर पर बंदीजनों के ठीक सामने सहनाई वाले मधुर तान छेड़ते हुए रस की वर्षा कर रहे हैं। बीच में राजपथ है, जिस पर गौओं, गोपों ओर गोपांगनाओं की भीड़ उमड़ी चली आ रही है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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