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;आजु कान्ह करिहैं अनप्रासन। | ;आजु कान्ह करिहैं अनप्रासन। | ||
− | ;मनि-कंचन के थार भराए, भाँति भाँति के बासन।। | + | ;मनि-कंचन के थार भराए, भाँति-भाँति के बासन।। |
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श्री रोहिणी जी का यह परिश्रम देख कर व्रजरानी की आँखों में स्नेह-जल भर आता है। सजल नेत्रों से वे कुछ क्षण रोहिणी जी की ओर देखकर फिर उन निमन्त्रित कुटुम्बी व्रज वधुओं की ओर देखने लगती है। इतना संकेत पर्याप्त है। वे शतशः व्रज वधुएँ तुरंत ही पकवान बनाने में जुट पड़ती हैं। | श्री रोहिणी जी का यह परिश्रम देख कर व्रजरानी की आँखों में स्नेह-जल भर आता है। सजल नेत्रों से वे कुछ क्षण रोहिणी जी की ओर देखकर फिर उन निमन्त्रित कुटुम्बी व्रज वधुओं की ओर देखने लगती है। इतना संकेत पर्याप्त है। वे शतशः व्रज वधुएँ तुरंत ही पकवान बनाने में जुट पड़ती हैं। |
01:04, 11 अक्टूबर 2017 का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
9. शिशु श्रीकृष्ण का अन्नप्राशन-महोत्सव, कुबेर के द्वारा गोकुल में स्वर्ण वृष्ठि
यथा समय व्रजरानी नित्य कर्म से निवृत्त हो कर पुत्र को गोद में लिये आँगन में चली आती है। गोपांगनाओं की अपार भीड़ उन्हें चारों ओर से घेर लेती है। निकटतम कुटुम्बियों को नन्द रानी ने दासी भेजकर नियन्त्रित किया है। वे सब आ गयी हैं। व्रजरानी एक बार भंडार की ओर जाती है। वहाँ पुत्र को गोद में लिये श्री रोहिणी जी सारी व्यवस्था कर रही हैं-
श्री रोहिणी जी का यह परिश्रम देख कर व्रजरानी की आँखों में स्नेह-जल भर आता है। सजल नेत्रों से वे कुछ क्षण रोहिणी जी की ओर देखकर फिर उन निमन्त्रित कुटुम्बी व्रज वधुओं की ओर देखने लगती है। इतना संकेत पर्याप्त है। वे शतशः व्रज वधुएँ तुरंत ही पकवान बनाने में जुट पड़ती हैं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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