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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
9. शिशु श्रीकृष्ण का अन्नप्राशन-महोत्सव, कुबेर के द्वारा गोकुल में स्वर्ण वृष्ठि
सूर्योदय में अभी विलम्ब है, किंतु गोप सुन्दरियों के दल-के-दल नन्द-प्रागण में एकत्र होने लगे। घड़ी भर दिन चढ़ते-चढ़ते तो नन्द भवन गोप-वनिताओं से सर्वत्र परिपूर्ण हो गया। नन्द भवन में पुर महिलाओं के लिये समय-असमय की रोक-थाम तो है नहीं तथा व्रजपुर में नन्द नन्दन के अन्नप्राशन मुहूर्त की सूचना फैल चुकी है। इसलिये आज यमुना स्नान करके कितनी ही गोप सुन्दरियाँ तो घर भी नहीं गयीं, सीधे नन्द भवन में ही चली आयीं। जिनके अतिशय अल्व वयस्क पुत्र हैं, उन्हें ही आने में कुछ विलम्ब हुआ; पर आयीं सब। छोटे शिशुओं को गोद में लिये, किंचित् वयस्क पुत्रों की अँगुली पकड़े, मंगल गीत गाते आती हुई गोप सुन्दरियों की मधुर कण्ठ ध्वनि से सुमधुर झन-झन, झिन-झिन, रुन-झुन, रुन-झुन, कंकण-किंकणी-नूपुर ध्वनि से राजपथ तथा राजपथ के दोनों ओर स्थित उत्तंग प्रासाद प्रतिशब्दित होने लगे। उन गोपांगनाओं की प्रत्येक भावभंगी से एक अद्भुत वात्सल्य, अप्रतिम मातृभाव का निर्झर झरता जा रहा है। उपनन्द जी ने आदेश दे रखा है कि आज मध्याह्न तक गोचरण स्थगित रहे। व्रजेन्द्रनन्दन के अन्नप्राशन के पश्चात समय रहने पर गायें निकटवर्ती वन में कुछ समय घुमा ली जायँ। अतः गोप मण्डली भी शीघ्रता से गायों को दुहकर, उनके सामने प्रचुर हरित-तृण डाल कर तथा स्वयं स्नान आदि समाप्त कर, विविध वेषभूषा से अलंकृत हो कर नन्द भवन की ओर उमड़ पड़ती है। उनकी पत्नियाँ, माताएँ तो पहले ही चली गयीं हैं। गायों की व्यवस्था करने के लिये ये रुके थे। उनकी व्यवस्था तो इन्होंने कर भी दी। किंतु शीघ्र-से-शीघ्र नन्द भवन पहुँचने की, नेत्रों से नन्द नन्दन को जी भरकर निहारने की प्रबल उत्कण्ठा वश दूध की उचित व्यवस्था ये नहीं ही कर सके। दुहे हुए दूध के पूर्ण भाण्डों को घर पहुँचाने तक का भी धैर्य इनमें न रहा। कुछ ही भाण्ड घर आये, अधिकांश गोष्ठ में ही रह गये। और तो क्या, बहुत-सी गायें बिना दुहे ही रह गयीं। गोवत्सों को यों ही उन्मुक्त कर दिया गया। चौकड़ी भरते हुए बछड़े अपनी माताओं से जा मिले। इसी अवस्था में उन्हें छोड़ कर गोप द्रुत गति से नन्दालय की ओर चल पड़े। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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