श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
52. व्रज के सम्पूर्ण गोपबालक एवं गोवत्स बने हुए श्रीकृष्ण का यह खेल प्रायः एक वर्ष तक निर्वाध चलता है, किसी को इस रहस्य का पता नहीं लगता। एक वर्ष में पाँच-छः दिन कम रहने पर एक दिन बलराम जी को वन में गायों का अपने पहले के बछड़ों पर तथा गोपों का अपने बालकों पर असीम और अदम्य स्नेह देखकर आश्चर्य होता है और तब श्रीकृष्ण उनके सामने इस रहस्य का उद्घाटन करते हैं।
यहाँ नन्दभवन में भी व्रजेश्वरी का, उनके नीलमणि का और समस्त कार्यक्रम तो ज्यों का त्यों चल रहा था। प्रातः समीर का स्पर्श पाते ही जननी यशोदा अपने पुत्र को विविध मनुहार के द्वारा प्रतिदिन ही जगातीं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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