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नीलसुन्दर इस समय प्रत्यक्ष इसे देख रहे हैं। न जाने प्रतिदिन कितनी बार असंख्य व्रजसुन्दरियाँ नन्दप्रांगण में आयी हैं और नीलमणि को अपनी गोद में देने के लिये नन्दगेहिनी की एवं परस्पर एक दूसरे की मनुहार कर चुकी हैं-
- नैकु गोपालहि मोकौं दै री।
- देखौं बदन-कमल नीकें करि, ता पाछें तू कनियाँ लै री।।
- अति कोमल कर-चरन-सरोरुह, अधर दसन-नासा सोहै री।
- लटकन सीस, कंठ मनि भ्राजत, मनमथ कोटि वारनें मैं री।।
- बासर-निसा बिचारति हौं, सखि! यह सुख कबहुँ न पायौ मैं री।
- निगमनि-धन, सनकादिक-सरबस बड़े भाग्य पायौ है तैं री।।
- जाकौ रूप जगत के लोचन, कोटि चन्द्र-रवि लाजत भैरी।
- सूरदास बलि जाई जसोदा, गोपिन-प्रान, पूतना-बैरी।।
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