|
इस प्रकार विविध क्रीड़ाओं का रस लेते हुए, रसदान करते हुए राम-श्याम दोनों भाई एवं असंख्य गोपशिशु तुमुल आनन्द कोलाहल से व्रज को, वन को गुंजित करते रहते। इन आनन्द कोलाहल को दूर से सुन-सुनकर ही व्रजरानी धैर्य धारण करतीं और जब मध्यान्ह आने लगता, तब विविध खाद्य द्रव्यों की छाक सजाकर परिचारिकाओं के द्वारा वन में भेज देतीं। राम-श्याम छाक आरोगते-
- सखन सहित हरि जेंवत छाक।
- प्रेम सहित मैया दै पठई, हित सौं बहुबिध कीने पाक।।
- सुबल सुदामा संग सखा मिलि भोजन रुचिकर खात।
- ग्वालिन कर तें छाक छुड़ावत, मुख में मेलि सरावत जात।।
- जे सुख कान्ह करत वृंदावन, सो सुख तीन लोक बिख्यात।
- सुर श्याम भगवत बस ऐसे ब्रह्म कहावत हैं नँदतात।।
|
|