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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
33. क्रीड़ा-निमग्न बलराम-श्रीकृष्ण को माता का यमुना-तट से बुलाकर लाना और स्नानादि के अनन्तर उनका नन्दरायजी की गोद में बैठकर भोजन करना; आँखमिचौनी-लीला
‘मेरे लाल! अरे कृष्ण! कमलनयन! बेटा! सुन तो सही, अरे शीघ्र आ जा! देख! मैं तुझे स्तन पिलाने आयी हूँ, तू स्तन्यपान तो कर ले। बहुत खेल चुका, अब खेल रहने दे। अरे तुझे भूख जो लग रही है। देख! खेलते-खेलते तू कितना थक गया है। अब आ जा!’ किंतु श्रीरोहिणी की भाँति व्रजेश्वरी को भी इस आह्वान का कोई उत्तर नहीं मिलता। कुछ क्षण वे शान्त खड़ी रहती हैं, फिर बलराम एवं गोपशिशुओं को पुकारती हैं-
‘अरे! राम! कुलदीपक! तू आ जा, बेटा! और साथ में नीलमणि को भी ले चल। अरे देख, प्रातःकाल तूने कलेऊ किया था, तब से कुछ नहीं खाया, क्या तुझे भूख नहीं लगी? अवश्य लगी है, अब तो शीघ्र से शीघ्र भोजन करना चाहिये! यदुकलभूषण! तू बात मान ले बेटा! देख, व्रजेश्वर भोजन पर बैठे तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आ जा, हमलोगों को भी तो सुखदान कर। और गोपबालक! सुनते हो, तुम सब भी अपने-अपने घर चले जाओ।’ |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।11।16-17)
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